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इस युवक की जिद्द ने गाँव को बना डाला रूरल टूरिज्म का हब


  •   कभी कुपोषण से होने वाली मौतों के लिए बदनाम था यह गाँव, आज भ्रमण करने आते हैं विदेशी पर्यटक   
ग्रामीणों को आर्थिक रूप से स्थिर बनाने के लिए सबसे पहले प्रकाश ने अपनी टीम के साथ, गाँव की महिलाओं को बुनाई प्रशिक्षण प्रदान किया। पुरुषों को बांस के उत्पाद जैसे मैट, फूलदान, कटोरे और टोकरी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। उचित भुगतान सुनिश्चित करने और इन उत्पादों की पहुँच को अधिकतम करने के लिए, ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया गया और उन्हें कई ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर अपने हाथ के कपड़े बेचने के लिए प्रशिक्षित किया।  


क गाँव जो कभी कुपोषण से होने वाली मौतों की वजह से बदनाम था। जहाँ न कोई रोजगार के संसाधन थे, न शिक्षा और न ही इलाज का कोई प्रबंध। आय का स्तर भी काफी कम था। ना बुनियादी सुविधाएं, न बिजली का कोई अता-पता और मोबाइल कनेक्टिविटी तो रही दूर की बात। आज यही गाँव ‘रूरल टूरिज्म’ का इस कदर हब बन गया है कि यहाँ विदेशी पर्यटक भ्रमण के लिए आने लगे हैं। बेरोजगारी का दंश झेल रहे इस गाँव के लोग अब आत्मनिर्भर हैं। यह सब संभव कर दिखाया है सिर्फ एक युवक की जिद्द ने। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के अमरावती जिले में मध्य प्रदेश की सीमा से सटे मेलघाट टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच बसे एक छोटे से गांव हरिसाल  की।  इस टाइगर रिजर्व के एक तरफ सिपना नदी है तो वहीं दूसरी तरफ पहाड़ियां। इस गांव में लगभग 1,200 लोग रहते हैं जिसमें 400 कोरका जनजाति के आदिवासी परिवार भी शामिल हैं। गाँव का कायाकल्प करने का पूरा श्रेय आईआईटी गुवाहाटी के पूर्व छात्र प्रकाश गुप्ता को जाता है। प्रकाश गुप्ता पहली बार इस गांव में तब आए थे जब उन्हें 2018 में माइक्रोसॉफ्ट के डिजिटल विलेज कार्यक्रम पर काम करने के लिए भेजा गया था। यह गांव उन्हें इतना पसंद आया कि नौकरी छोड़कर उन्होंने यहीं बसने का फैसला कर लिया। अब वे यहां रहकर रूरल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे हैं और इकोटूरिज्म की पहल भी शुरू कर रहे हैं। वे उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'इस गांव की अनोखी स्थिति और कोरकू जनजाति की संस्कृति ने मुझे काफी प्रभावित किया और मुझे इकोटूरिज्म पहल शुरू करने की प्रेरणा दी।' प्रकाश ने इस गांव में हरिसाल पर्यटन पहल के तहत घूमने वालों के लिए कई सारी सुविधाएं शुरू करवाईं। इसमें सौर ऊर्जा से चलने वाले पैनल से लेकर सुलभ वाईफाई, जंगल सफारी तक स्थानीय गाँव की गतिविधियों में भाग लेने के लिए देशी कोरकू जनजाति के साथ सांस्कृतिक अनुभव तक शामिल है।

ग्रामीणों के लिए पैदा किए स्थायी आजीविका के अवसर 
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के मुताबिक, 'डिजिटल विलेज प्रोजेक्ट का जन्म माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नाडेला और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच हुई बैठक में हुआ था, जो चाहते थे कि राज्य सरकार कंपनी के साथ साझेदारी करके एक डिजिटल गाँव को सर्वश्रेष्ठ-इन-क्लास तकनीक से संचालित करे।' ग्रामीण इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता प्रदान करना डिजिटल इंडिया पहल की प्राथमिकता थी, जिसने माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के राष्ट्रीय सशक्तिकरण योजना के साथ जोड़ा गया। होमस्टे इसके लिए 2016 में माइक्रोसॉफ्ट ने व्हाइट स्पेस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया और निष्क्रिय स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर यहां फ्री इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध करवाने का काम किया। गाँव में चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ने अमरावती सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल के साथ भागीदारी की। आजीविका के अवसर पैदा किए । वर्ष 2018 तक हरिसाल गांव को डिजिटली जोड़ दिया। इसे लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिए भी चुना गया था। जब 29 वर्षीय प्रकाश गांव में आए, तो उन्होंने स्थानीय लोगों के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करने के तरीकों के बारे में सोचना शुरू किया। इसके पहले प्रकाश स्टेट बैंक आॅफ इंडिया द्वारा दिए जाने वाले यूथ फॉर इंडिया फेलो के तौर पर काम कर चुके थे। इसलिए उन्हें ऐसी समस्याओं पर काम करने का अनुभव हासिल था।     

             

गाँव आने वाले पर्यटक चखते हैं आर्गेनिक अन्न का स्वाद  
प्रकाश ने जनजाति समुदाय को जागरूक किया और उनके लिए एक गैर लाभकारी संगठन बनाया, जिससे कि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके और उनका परिवार आसानी से चल सके। यहां आने वाले पर्यटक ग्रामीण जीवन का अनुभव कर सकते हैं। उन्हें किसानों के साथ काम करने का मौका मिलता है और आॅर्गैनिक रूप से उगाए गए अन्न के साथ पकाया गया स्थानीय भोजन का स्वाद भी चखने का मौका मिलता है। इस पहल के तहत पिछले एक साल के भीतर कई सारे पर्यटकों ने यहां का भ्रमण किया।

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