पंचायत चुनाव-2022। खोटे सिक्कों को चलन से बाहर करें, युवा व ईमानदार पंचायत बनाएं
ग्राम पंचायतों में लगे भ्रष्टाचार रुपी घुन की परत दर परत पोल खोल रहे हैं संदीप कम्बोज
संदीप कम्बोज। विलेज ईरा
लो, जी एक बार फिर आ गई आपके इम्तिहान की घड़ी। हरियाणा में पंचायत चुनाव की रणभेरी अब किसी भी वक्त बजने वाली है। कुछ नए व पुराने चेहरे पंचायत चुनाव की इस जंग में उतरने की तैयारी में हैं। कई गाँवों में तो चुनाव लड़ने वाले संभावित उम्मीदवारों ने पहले से ही जनसंपर्क अभियान छेड़ रखा है वहीं कई गांवों में अभी किसी उम्मीदवार ने पत्ते नहीं खोले हैं। वैसे पंचायत चुनाव ही एक ऐसा चुनाव है कि सर्वसम्मति ना बने तो नतीजे घोषित होने तक भी सस्पेंस बना रहता है कि आखिर ग्रामीणों के दिल में क्या है? इस वक्त हर गाँव में पंचायत चुनावों की ही चर्चा हो रही है और ग्रामीण मंथन में लगे हैं कि आखिर इस बार गाँव में सरपंच किसे बनाया जाए ? इसमें ग्रामीण वोटरों की राय अलग-अलग हो सकती है। कोई इसे राजनीति के चश्मे से देख रहा है तो कोई जाति के चश्मे से। कोई किसी राजनेता के चमचों और दल्लों को ही सरपंच बनाने में गाँव का विकास मान रहे हैं तो कोई अपनी-अपनी जाति के नागरिक को पंच-सरपंच बनाने की आस लगाए बैठे हैं। कुछ पूर्व पंच-सरपंचों के चमचे पीढ़ी दर पीढ़ी वाली पुरानी परंपरा निभाने के राग अलाप रहे हैं तो कई बड़े राजनेताओं वाले गाँवों में पंच-सरपंच से लेकर हर पद उनके हिसाब से तय किए जाने की बातें हो रही हंै। इन राजनेताओं की गाँवों की पंचायत में इस हद तक घुसपैठ होती है कि ये हर तरह का जोड़-तोड़ लगाकर अपने किसी चमचे को गाँव का पंच-सरपंच बनवा देते हैं और चुनाव के बाद नेताओं के यही चमचे पंच-सरपंच खुलकर भ्रष्टाचार करते हैं। इन्हें उस राजनेता की तरफ से ही भ्रष्टाचार की खुली छूट होती है क्योंकि इन भ्रष्ट पंच-सरपंचों द्वारा उसमें से कुछ टूकड़े संरक्षण देने वाले राजनेता व सरकारी अधिकारियों को भी डाल दिए जाते हैं। ग्रामीण वोटरों को ऐसे नेताओं के दल्लों और चमचों को पहचानने की जरुरत है। ये चमचे किसी भी राजनीतिक दल से हो सकते हैं। नेताओं के इन चमचों की यदि कुंडली खंगाली जाए तो पता चला है कि ये बिना पद पर रहते हुए भी बड़े लाभ उठा रहे होते हैं। किसी चमचे को चमचागिरी के ईनाम में सरकारी ठेके मिले हैं तो किसी चमचे के परिवार-रिश्तेदार कोंट्रेक्ट आदि पर नौकरियां कर रहे होते हैं। इन चमचों को गाँव के सार्वजनिक कार्यों से कोई लेना-देना नहीं होता। हाँ गाँव में कोई अच्छा सार्वजनिक कार्य होने वाला है तो ये चमचे उसी नेता की बदौलत रूकवा जरुर देंगे कि कहीं इसका क्रेडिट कोई और न ले जाए। ये चमचे गाँव में सिर्फ वही काम होने देते हैं जिनमें इन्हें खुद का लाभ दिखाई देता है। किसी भी गाँव पर नजर दौड़ा लो, हर गाँव की यही कहानी मिलेगी। हर गाँव में चुनिंदा 20-30 लोग ही गाँव के ठेकेदार बने मिलेंगे जो गाँव को खासकर पंची-सरपंचीअपनी बपौती समझ बैठे हैं। येन-केन-प्रकारेण इन 20-30 लोगों का धंधा ही यही होता है कि हर-बार के पंचायत चुनाव में या तो वे ही पंच-सरपंच या ब्लॉक समिति सदस्य बनें या इनके परिवार-रिश्तेदारों व चेले-चपाटों में से किसी को पंच-सरपंच बनवा दें। और चुनाव बाद ये उसी नेता की बदौलत खुलकर भ्रष्टाचार करते हैं। मनरेगा से लेकर तमाम सरकारी योजनाओं में खुलकर बंदरबांट होती है। इस भ्रष्टाचार में से हिस्सा राजनेताओं के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों को भी जाता है। और ग्रामीण हैं कि गाँव की बर्बादी पर जश्न मना रहे होते हैं कि हमने फ्लां नेता के चमचे को पंच-सरपंच बनवा दिया और इस बार गाँव में जमकर विकास होगा। चुनाव के बाद ईमानदार ग्रामीण तब हैरान रह जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि वे ठगे गए हैं। यहाँ ईमानदार ग्रामीण शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूं कि आधे से ज्यादा ग्रामीण भी पंच-सरपंचों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को फलने-फूलने में मदद करते हैं क्योंकि वे खुद भी किसी न किसी सरकारी योजना का गलत लाभ लेकर सरकारी मलाई डकार रहे होते हैं। अब चुनाव के बाद शुरु होता है गाँवों के विकास के लिए आए पैसे की बंदरबांट और लूट-खसोट का असली खेल। कई गाँवों में पंच-सरपंच व ब्लॉक समिति सदस्य किस तरह से सरकारी खजाने को चपत लगाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। हर ग्रामीण जानता है कि फ्लां पंच-सरपंच भ्रष्टाचार कर रहा है। लेकिन विरोध में आवाज उठाने की हिम्मत किसी में नहीं। क्योंकि सब जान रहे होते हैं कि इस भ्रष्टाचारी पंच-सरपंच पर किस सफेदपोश का हाथ है। और गाँवों की सबसे बड़ी विडंबना ये कि गाँव में पंचायतियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर कोई बात तक नहीं करना चाहता। यदि गाँव का कोई नागरिक पंच-सरपंचों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टचार पर बात कर भी रहा है और अचानक सामने से वही पंच-सरपंच या उनका चेला-चपाटा, यार-रिश्तेदार आ जाए तो वह तुरंत उस मुद्दे पर बात करना बंद कर देते हैं और दूसरे को कोहनी मार कर कहते हैं कि अरे चुप हो जा, वो आ रहा है। इस वाकये के बारे में आप क्या कहेंगे। वास्तविकता यही है। इन भ्रष्टाचारियों के बारे में बात करने से भी हर कोई कतराता है। अगर घर में अपने परिजनों के बीच कोई गलती से ग्राम पंचायत द्वारा किए जा रहे घोटालों व गड़बड़झालों पर बात छेड़ भी दे तो उल्टा उसे ही धमकाकर नसीहत दे दी जाती है कि तुझे क्या लेना है। वे घेटाले कर रहे हैं तो करने दे, तेरे घर से क्या खा रहे हैं। और इस स्थिति से ये पंचायती लोग भली-भांति वाकिफ हैं, इसलिए ही तो खुलकर भ्रष्टाचार करते रहते हैं। हर गाँव में ग्रामीणों की इसी चुप्पी का जमकर फायदा उठाया जा रहा है। यदि कोई ग्रामीण हिम्मत करके इन भ्रष्टाचारियों की पोल खोलने का प्रयास करता भी है तो पहले तो ये भ्रष्टाचारी उसके परिवार को धमकी देते हैं कि उसे समझाओ, वरना ठीक नहीं होगा। अगर वह फिर भी नहंी मानता और पंचायतियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार व गलत कार्यों विरुद्ध आवाज बुलंद करता रहता है तो उन घोटालेबाजों द्वारा वह जिस समाज से है, उस जाति का जो ठेकेदार बना घूम रहा है, उसके माध्यम से डराया-धमकाया जाता है। और यदि वह फिर भी नहीं मानता तो उस ईमानदार ग्रामीण के खिलाफ ये पंचायती लोग संबंधित नेता के दबाव से कोई न कोई झूठा मुकदमा दर्ज करवा देते हैं। ये मुकदमा उस व्यक्ति के चरित्र पर लांछन लगाने का भी हो सकता है जैसे कि छेड़छाड़ या दुराचार। क्योंकि राजनीति में यह आम बात है कि जो भी सफेदपोश नेता गड़बड़झाले व अनैतिक कार्य करते हैं, वे अपने बचाव का प्रबंध पहले ही करके रखते हैं। वे ऐसे चमचोंं को भी अपने साथ रखते हैं जिनमें महिलाएं भी होती हैं ताकि कोई आवाज उठाए तो उसके विरुद्ध छेड़छाड़-दुराचार से लेकर गंभीर से गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दिया जाए ताकि उनके घोटालों के खिलाफ आवाज उठाने की कोई दूसरा हिमाकत न कर सके। जी हाँ! यही कड़वा सच है गाँवों का जो हमने आज आप सबके सामने खोलकर रख दिया है। शायद इस तरह के घोटाले करने वालों को यह बुरा भी लगे लेकिन सच तो सच है। किसी को बुरा लगे या भला, हमने तो सच की अलख जलाने का बीड़ा उठाया है। विलेज ईरा ने गाँवों में बदलाव की ईबारत लिखने के लिए ही पत्रकारिता जगत में दस्तक दी है और हम ये डंके की चोट पर कह रहे हैं कि हमने गाँवों को स्वर्ग बनाने का जो सुनहरा स्वप्न संजोया है, उसे हम हर हाल में पूरा करके रहेेंगे। गाँवों को बदलना है। इसलिए ग्रामीणों को गाँव के अच्छे-बुरे की पहचान करवाना हमारा नैतिक दायित्व बनता है। जल्द ही हम गाँवों को बर्बाद करने में जुटे हर उस चेहरे को भी सामने लाने का प्रयास करेंगे जो भोले-भाले ग्रामीणों को बेवकूफ बनाकर अपना राजनीतिक व निजी स्वार्थ पूरा कर रहे हैं। ग्रामीण मतदाताओं से अपील कि इस बार के पंचायत चुनाव में पहले वाली गलती न दोहराएं। खाने-खिलाने व सरकारी पैसा लूटने वाली चली आ रही परंपरा को बंद करें। खोटे सिक्कों को चलन से बाहर निकाल फैंके। सिर्फ उसी उम्मीदवार को वोट दें या सर्वसम्मति से पंच-सरपंच चुनें जो बेदाग हो, लेश मात्र भी भ्रष्टाचारी न हो। जाति के ठेकेदारों और अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं के ठेकेदारों पर भी आँख मूंद कर भरोसा मत करें। यह गाँव आपका है। गाँव का विकास आपका विकास है। गाँव की शान आपकी अपनी शान है। इसलिए इस बार पूरी तरह से सोच-समझकर ही वोट का प्रयोग करें और पीढ़ीवाद व जातिवाद का वहम लेकर घूम रहे ठेकेदारों को करारा सबक सिखाएं।
उम्मीदवार की पूरी कुंडली खंगालकर ही करें वोट
तो अब बात करते हैं इस बार के पंचायत चुनाव की। यदि सही मायने में आप अपने गाँव का विकास करवाना चाहते हैं तो सबसे पहले इतमिनान से अपने अंदर झांकिए। अपने दिलो-दिमाग पर चढ़े जातिवाद, मोहल्लावाद, चमचावाद और पीढ़ीवाद वाले चश्मे को उतार फेंकिए। अब गाँव के सार्वजनिक विकास के बारे में सोचिए न कि खुद के स्वार्थ के बारे में। सबसे पहले आप देखिए कि ऐसे कौन-2 नागरिक हैं जो गाँव के विकास के लिए नि:स्वार्थ सेवा/कार्य कर रहे हैं। यदि किसी राजनेता का चमचा जो गाँव में अपने आप को किसी नेता का ठेकेदार बोलता हो, वह भी यदि पंच-सरपंच बनना चाहता है तो सबसे पहले उसकी कुंडली पर नजर दौड़ाएं। इस कुंडली में आप देखें कि उस व्यक्ति ने गाँव की भलाई के लिए क्या किया है, क्या उसने गाँव का कोई ऐसा सार्वजनिक कार्य करवाया है जिससे पूरे गाँव को फायदा हुआ हो, गाँव का सिर गर्व से ऊंचा हुआ हो। क्या राजनीतिक रसूख की बदौलत उसने कोई सरकारी ठेके तो नहीं ले रखे, कहीं राजनीतिक रसूख की बदौलत उसने अपने परिवार-रिश्तेदारों व चमचोें को नौकरियां तो नहीं दिलवाई या राजनीतिक पुहंच से कोई और बड़ा लाभ उठाया हो। यदि ऐसा है तो अब आप स्वंय ही समझ सकते हैं कि वह पंच-सरपंच बनने के बाद गाँव का क्या भला करेगा। बिना किसी पद पर रहते हुए सिर्फ राजनीतिक रसूख से जब वह सरकारी ठेके ले रहा है, अपने परिवार-रिश्तेदारों-चमचों को डीसी रेट पर नौकरियां लगवा रहा है या कोई अन्य बड़ा लाभ ले रहा है तो पंच-सरपंच बनने के बाद वह क्या-क्या करेगा, इसका अंदाजा आप स्वंय लगा सकते हैं। इसलिए ऐसे सफेदपोशों के करीबियों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आने से पहले अच्छी तरह से मंथन कर लें कि इसे वोट देने का परिणाम कल को पूरे गाँव को न भुगतना पड़े।
पीढ़ीवाद व जातिवाद पर करें वोट की चोट
इस बार के पंचायत चुनाव में खुद पंच-सरपंच बनकर या अपने परिजनों-रिश्तेदारों व चमचों को चुनाव लड़वाकर सरकारी मलाई डकारते आ रहे लोगोें की मंशा को भी समझने की जरुरत है। क्योंकि गाँवों में आम धारणा है कि पंची-सरपंची तो बनी ही सरकारी खजाना डकारने के लिए है। यही बड़ी वजह है कि पूर्व में एक बार भी पंच-सरपंच रह चुके व्यक्ति व उनके परिजन बार-बार गाँव की चौधर की तरफ भागते हैं। वे चाहते हैं कि हर बार बस उनके ही परिवार-खानदान से ही पंच-सरपंच आदि बनें बाकि गाँव जाए भाड़ में। कई गाँवों में तो यहाँ तक चर्चाएं चल रही हैं कि अब से पूर्व बार फ्लां-फ्लां जाति के लोगों ने पंची-सरपंची में माल डकार लिया है, इस बार हमें डकार लेने दो। अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसी सोच रखने वाले लोग गाँव का क्या भला करेंगे। ये पीढ़ीवाद वाले व हर जाति के अलग-अलग ठेकेदार बनकर घूम रहे भी कोई ज्यादा नहीं हैं। हर गाँव में इनकी संख्या महज 15-20 है। जातियों के यही ठेकेदार ग्रामीणों को जात-पात के नाम पर बांटते हैं और उन्हें जाति का चश्मा पहनाकर खुद पंच-सरपंच बन जाते हैं। अब जातियों के ठेकेदारों से संबंधित जाति के वोटरों को सवाल भी पूछना चाहिए कि भाई हर बार आप,आपका परिवार व रिश्तेदार ही क्यों ? समाज में और भी लोग होंगे, वे क्यों नहीं बन जाते पंच-सरपंच। ऐसा सवालों का इन ठेकेदारों के पास कोई जवाब नहीं होता? अब इनसे कोई पूछे कि क्यों भाई क्या तुम्हें और तुम्हारे परिवार-रिश्तेदारों, चमचों को ही आती है क्या पंची-सरपंची करनी, बाकि गाँव बेवकूफ है। सही मायने में जातियों के ये ठेकेदार अपने परिवार,रिश्तेदार व चमचों आदि को छोड़कर समाज के बाकि लोगों को समझते ही बेवकूफ हैं क्योंकि हर बार के पंचायत चुनाव में यही ठेकेदार अपनी जाति की तरफ से पंचायत चुनाव की अगुवाई कर रहे होते हैं और समाज के बाकि लोग चुपचाप हाँ में हाँ मिलाकर इनका साथ दे देते हैं। इन जातिगत ठेकेदारों के पीछे लगने से पहले वे ये नहीं देखते कि कहीं वो अपना कोई उल्लू सीधा तो नहीं कर रहा है। परिणामस्वरुप जाति के ये ठेकेदार अपने घर के दो-तीन सदस्यों को पंचायत चुनाव में उतारकर अलग-अलग पदों पर काबिज हो जाते हैं। अब चुनाव बाद सरपंच भी इनका, पंच भी इनका, ब्लॉक समिति सदस्य भी इनका और नेता का आशीर्वाद रह गया सो अलग। अब शुरु होता है भ्रष्टाचार का असली खेल। अब दोनों हाथों से सरकारी खजाने को लूटा जाता है। क्या मजाल कोई चूं भी कर जाए। करके तो दिखाए, नेताजी बैठे हैं ना, मुकदमा करवा देंगे, आवाज उठाने वाला 24 घंटे से पहले अंदर। अत: ग्रामीण वोटरों से निवेदन है कि अपने-अपने गाँव में ऐसे ठेकेदारों को भी पहचानें। चाहे कोई किसी नेता का ठेकेदार है या किसी जाति विशेष का। इसके पीछे उनकी क्या मंशा हो सकती है, उसे पहचानने की जरुरत है।
है किसी में इतना दम जो इन वादों के साथ पंचायत चुनाव में उतरे ?यदि आप वास्तव में जातिवाद व नेताओं के ठेकेदारों से ऊपर उठकर गाँव का विकास करना चाहते हैं तो विलेज ईरा ने एक माँग पत्र तैयार किया है। आप इस माँग पत्र पर उम्मीदवार से हस्ताक्षर करवाईए और इसे पूरा करने वाले को सर्वसम्मति से सरपंच बनाईए। पंच-सरपंचों को तो छोड़िए, यह मांगपत्र पढ़कर शायद ही कोई ग्रामीण होगा जो इस पर सहमति जताएगा क्योंकि अधिकतर ग्रामीणों के लिए भी गाँव के सार्वजनिक कार्यों से ज्यादा अपने निजी कार्य अधिक महत्व रखते हैं। लेकिन वास्तव में गाँव का असली रोडमैप यही है। यदि आप सही मायने में निष्पक्ष तरीके से गाँव का संपूर्ण विकास चाहते हैं तो इन माँगों पर सहमति अवश्य जताएंगे, नहीं तो आपको यह मांगपत्र पढ़ कर बहुत ज्यादा गुस्सा आएगा क्योंकि इसमें गाँव में होने वाले हर गलत काम के खिलाफ आवाज उठाई गई है। यदि आपको ये मांगें पसंद नहीं है तो आपके गाँव का तो भगवान ही मालिक है क्योंकि ये मांगे किसी भी तरह के निजी स्वार्थ से परे हटकर गाँव के संपूर्ण विकास के लिए तैयार की गई हैं।
1. गाँव के विकास कार्यों में किसी भी तरह का गड़बड़झाला न ही खुद करेंगे और न किसी दूसरे को करने देंगे। गाँव के विकास के लिए आया पैसा गाँव पर ही खर्च करेंगे।
2. सभी सरकारी योजनाओं का लाभ सिर्फ और सिर्फ पात्र योग्य ग्रामीणों को ही दिलवाएंगे , न कि पंचों-सरपंचों,नंबरदारों व गाँव के अन्य रसूखदारों, उनके परिजनों, रिश्तेदारों व उनके चेले-चपाटों को।
3. पूर्व में भी किसी योजना का फर्जी तरीके से लाभ ले रहे लोगों को उस लाभ से वंचित करेंगे।
4.सरकारी पैसे व सरकारी संपत्ति का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ गाँव के विकास के लिए करेंगे न कि पंच-सरपंच-नंबरदारों व अन्य रसूखदारों के घर,आंगन व पशुओं के बाड़े में।
5. मनरेगा जैसा कोई घोटाला नहीं करेंगे। किसी का फर्जी जॉब कार्ड नहीं बनाएंगे चाहे वह पंच-सरपंच-नंबरदारों व अन्य रसूखदारों के परिवार, रिश्तेदार व चमचों में से ही क्यों न हो।
6. गाँव के विकास कार्यों में कोई भेदभाव नहीं करेंगे, न ही चुनावी रंजिश के आधार पर और न ही मोहल्ले(बगड़), जाति व धर्म के आधार पर। पूरे गाँव के हर वार्ड में समान विकास करेंगे।
7. गाँव से अवैध कब्जे हटवाएंगे, चाहे कब्जाधारी स्वंय पंचायती ही क्यों न हों, सब पर कार्रवाई करेंगे।
8. गाँव को पूर्णतया नशामुक्त करेंगे। शराब के ठेके बिल्कुल बंद करवाएंगे चाहे वे ठेके पंचायतियों, उनके रिश्तेदारों व चमचों के ही क्यों न हों।
9 . गाँव में कोई अवैध कार्य नहीं होने देंगे , चाहे इसे करने वाले स्वंय पंच-सरपंच-नंबरदारों व अन्य रसूखदारों के परिवार, रिश्तेदार व चमचे ही क्यों न हों।
10. गाँव में फर्जी बीपीएल कार्ड बिल्कुल नहीं बनने देंगे। जिन लोगों ने पहले से फर्जी तरीके से बीपीएल कार्ड बनवा रखे हैं, उन्हें कटवाएंगे।
11. ग्राम सभा की नियमित मिटिंग बुलाएंगे और उसमें पूरे गाँव के वोटरों को आमंत्रित करेंगे। गाँव के विकास को लेकर हर तरह की रूपरेखा व नए प्रोजेक्टों को लेकर पूरे गाँव के समक्ष चर्चा करेंगे न कि बंद कमरे मेंं सिर्फ पंचायतियों के परिवारों, रिश्तेदारों और चेले-चपाटों के साथ।

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