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कितनी होती है पंच-सरपंच की सैलरी, आखिर कहाँ से कमाते हैं पंच-सरपंच, गाँवों के विकास कार्यों में कैसे होता है भ्रष्टाचार,जानें क्या है गाँवों में भ्रष्टाचार का बिजनेस मॉडल

  • हरियाणा पंचायत चुनाव स्पेशल : पढ़ें ग्रामीण भ्रष्टाचार की पूरी पोल खोलता DNA टेस्ट

हरियाणा में पंचायत चुनाव का बिगुल बहुत जल्द बजने वाला है। प्रदेश सरकार ने 30 सितंबर से पहले पंचायत चुनाव करवाने का ऐलान किया है। (Know-what-is-the-business-model-of-corruption-in-villages) चुनाव आयोग से लेकर हरियाणा सरकार का प्रशासनिक तंत्र जोर-शोर से तैयारियों मेें जुटा है। साथ ही गाँवों में चुनाव लड़ने वाले संभावित उम्मीदवारों ने भी चुनाव प्रसार शुरु कर दिया है। इस बार गाँवों में पुराने पंचायतियों के साथ-साथ नए-नए युवा नेता भी पंचायत चुनाव के रण में कूदने की तैयारी में हैं। कोई पंच, सरपंच बनने की चाहत लिए ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने में जुटा है तो कोई जिला पार्षद व पंचायत समिति सदस्य बनने की लालसा लिए वोटरों की नब्ज टटोल रहा है। पंचायत चुनाव में इस बार हर गाँव के हर वार्ड से दर्जनों उम्मीदवार उतरने की तैयारी में हैं। आखिर यह होड़ किसलिए मची है। यह जानना इसलिए भी जरुरी हो जाता है कि आखिर पंची-सरपंची में ऐसा क्या है कि गाँवों में यह एक बिजनेस मॉडल की तरह बन चुका है। क्या आप जानते हैं सरकार इन पंच-सरपंचोें को कितना वेतनमान देती है।कई लोग ऐसा सोचते हंै कि सरपंच को लाखों रु सैलरी मिलती है लेकिन आपको बता दें कि अगर आप सरपंच की सैलरी के बारे मे जानोगे तो हैरान रह जाओगे कि सिर्फ इतनी सैलरी के लिए लोग सरपंच बनने के लिए चुनाव के समय लाखों रुपए खर्च कर देते हैं। तो आपको बता दें हरियाणा में वर्तमान में सरपंचों को तीन हजार रुपए प्रति माह तो पंचों को एक हजार रुपए प्रति माह वेतनमान दिया जा रहा है। इस हिसाब से सरपंच को अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में एक लाख 80 हजार रुपए तथा पंच को पांच साल में 60 हजार रुपए वेतनमान मिलता है। तो अब आप सोच रहे होंगे कि क्या ये महज इतने से वेतन के लिए पंच-सरपंच बनने के लिए उतावले रहते हैं। पांच साल पूरे होते-होते कैसे दोगुनी-चोगुनी हो जाती है इनकी संपत्ती, क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है। पांच साल बाद यही पंचायती कैसे बन जाते हैं लखपति व करोड़पति? कैसे बन जाते हैं इनके विशाल बंगले, कहाँ से आती हैं बड़ी-बड़ी लाखों की गाड़ियां ? अब आप खुद सोचिए कि क्या महज 1.80 लाख रुपए वेतन में इतना सब संभव हो सकता है। अब खुद अंदाजा लगाएं कि जो आज समाजसेवी होने की दुहाई देकर ग्रामीणों को बरगलाने में लगे हैं क्या वे वास्तव में समाजसेवा के लिए चुनाव में उतर रहे हैं। ऐसे लोगों की मंशा को पहचानने की सख्त जरुरत है। यदि आप जानना चाहते हैं कि पंच-सरपंच बनने की यह होड़ किसलिए मची है तो आप सबसे पहले अपने गाँवों के पूर्व पंचायतियों की कुंडली पर नजर दौड़ाएं जो पिछले 10-15 साल से पंच-सरपंच निर्वाचित होते आ रहे हैं। चुने जाने के वक्त उन पंच-सरपंचों की संपत्ति क्या थी और अगले पांच साल बाद क्या ? पूरी पिक्चर खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी कि आखिर पंची-सरपंची में ऐसा क्या है जो सरकारी नौकरी में या अपने खुद के बिजनेस में भी नहीं है। यहाँ बताना जरुरी है कि आज हिन्दुस्तान में नेताओं के बाद सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार कोई कर रहा है तो वो हैं देश की ग्राम पंचायतों में बैठे पंच-सरपंच व ग्राम प्रधान। इन पंचायतियों द्वारा किए भ्रष्टाचार पर किसी की भी नजर नहीं है न देश की मीडिया की और न ही प्रशासनिक तंत्र व कानून की। भारत में कोई ऐसा राज्य नहीं है जहाँ हर साल ग्राम पंचायतों यानि पंच-सरपंचों द्वारा किए भ्रष्टाचार के मामले उजागर न होते हों। पंचायतों में भ्रष्टाचार के हर साल हजारों मामले हर प्रदेश में दर्ज होते हैं और इनमें कार्रवाई होती है महज 8-10 प्रतिशत मामलों में। 90 फीसद पंचायती भ्रष्टाचारी नेताओं के रहमो-कर्म से अफसरोें से मिलीभगत कर खुले आम लूट मचाते हैं। इस तरह के मामले या तो उजागर होते ही नहीं। यदि हिम्मत करके कोई उजागर कर भी दे तो इनमें कार्रवाई नहीं हो पाती। कार्रवाई करे तो करे कौन क्योंकि उपर से लेकर नीचे तक सारा सिस्टम ही भ्रष्ट है। भ्रष्ट पंच-सरपंचों द्वारा अपने भ्रष्टाचार में से कुछ टूकड़े फेंककर पहले ही नेताओं व अधिकारियों को खरीद लिया जाता है। विस्तार से पढ़ें गाँवों में कैसे चलता है यह लूटतंत्र और पंचायत चुनाव में कूदने को क्यों मचती है होड़। बता रहे हैं विलेज ईरा के संपादक संदीप कम्बोज 

पंचायती फंड में नीचे से लेकर ऊपर तक होती है बंदरबांट, इसलिए पंची-सरपंची बन चुकी है भ्रष्टाचार का बिजनेस मॉडल  

सबसे पहले आपको बताते हैं कि गाँवों में पंची-सरपंची अब सरकारी नौकरी से भी ज्यादा पंसदीदा क्यों बनती जा रही है। (How-much-is-the-salary-of-Panch-Sarpanch) इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा हर साल अलग-अलग मदों से गाँवों यानि ग्राम पंचायतों को दिया जाने वाला करोड़ों का बजट। सरकार के अलावा कई ग्राम पंचायतों के पास खुद की कमाई के भी इतने संसाधन हैं कि उन्हें करोड़ों रुपए का सालाना राजस्व प्राप्त हो रहा है। हरियाणा में भी ऐसी कई पंचायतें हैं जिनकी खुद की यानि सिर्फ पंचायत की कमाई 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है बाकि सरकार से विभिन्न मदों से मिलने वाला फंड रह गया सो अलग। और यह सारा फंड गाँव के प्रथम नागरिक यानि सरपंच व पंचों को मिलकर खर्च करना होता है। वर्ष 2014 से जब से मोदी सरकार आई है तब से ही गाँवों को मिलने वाला फंड कई गुना बढ़ चुका है। कई बड़े गाँवों में तो सरकार की तरफ से सालाना 5 से 10 करोड़ रुपए का फंड विकास कार्यों के लिए दिया जा रहा है। छोटे गाँवों में भी 1-2 करोड़ सालाना बजट सरकार द्वारा दिया जा रहा है। अब आप एक गाँव में सालाना एक करोड़ सरकारी फंड ही मान कर चलें। अब अंदाजा लगाएं कि क्या यह पूरा फंड गाँवों में लगाया जा रहा है, यह हमारे गाँवों की हालत खुद बयां कर रही है। यदि इस फंड में से ग्राम पंचायतों द्वारा पचास प्रतिशत भी गाँवों के विकास कार्यों में लगा दिया गया होता तो आज हमारे गाँवों की तस्वीर कुछ ओर होती। सरकार द्वारा दिया जाने वाला यह फंड ही पंचायतियों की असल कमाई है। इस फंड की ऊपर से लेकर नीचे तक बंदरबांट होती है। नेताओं व पंचायत विभाग के अफसर, बीडीपीओ, ग्राम सचिव, सरपंच, पंच, ब्लॉक समिति सदस्य, जिला पार्षद सब मिलकर आपके गाँव को मिलने वाला फंड डकार जाते हैं। यदि किसी गाँव को सालाना एक करोड़ रुपए का फंड विकास कार्यों के लिए मिला है तो उसमेें से महज 8-10 लाख रुपए ही विकास कार्यों पर लगाए जाते हैं बाकि 90 लाख रुपए सरपंच-पंच, ग्राम सचिव व बीडीपीओ मिलकर डकार जाते हैं। विलेज ईरा के पास ग्रामीण भ्रष्टाचार के सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिनमें सरपंच, ग्राम सचिव, बीडीपीओ व पंचों द्वारा गाँव के सरकारी फंड में गबन किया गया है। दर्जनों पंचों-सरपंचों, बीडीपीओ व ग्राम सचिवों को सजा भी हुई है। निलंबन भी किया गया है, वसूली भी हुई है लेकिन बावजूद इसके ये भ्रष्टाचारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। अकेले हरियाणा के गाँवों में पंचायतियों द्वारा किए भ्रष्टाचार के उदाहरण गिनवाने लगें तो समय कम पड़ जाएगा। अब आप आसानी से समझ गए होंगे कि सरकार से हर साल मिलने वाली करोड़ों रुपए की ग्रांट ने ही गाँवों में पंची-सरपंची को एक बिजनेस मॉडल बना डाला है। 

ग्राम पंचायतों में इस तरह से होता है असल भ्रष्टाचार 

यदि सरकार द्वारा गाँवों को दी जाने वाली ग्रांट में से आधी भी गाँवों में लगने लग जाए तो बड़ी से बड़ी ग्राम पंचायत जन्नत बन जाएं। (After-all-from-where-do-the-Panch-Sarpanch-earn?) लेकिन पंच, सरपंच इन्हीं पैसों में से धनवान बन जाते हैं। पुरानी गलियों, नालियोें, ड्रेनों आदि को जो सही अवस्था में हैं, उनका नया निर्माण दिखाकर ग्रांट डकार जाते हैं। आपने कई बार समाचार पत्रों में पढ़ा होगा कि कागजों में ही बन गई गली व नाली तो यह उसी भ्रष्टाचार का नमूना भर है। गली, नाली की मुरम्मत के नाम पर, जोहड़ों आदि की खुदाई के नाम पर, मनरेगा में फर्जीवाड़ा करके, अधूरे काम को पूरा दिखाकर, कम पैसे में काम पूरा करके, झूठे बिल बनाकर सरकार से ये पैसे ले तो लेते हैं  पर ग्राम पंचायत के काम में नहीं लगाते। ये सब पैसा भ्रष्ट पंच, सरपंचों द्वारा अपनी जेबों में भर लिया जाता है। ग्राम पंचायत के पास गाँव के विकास के लिए अलग-अलग मदों से हर साल करोड़ों रुपए आते हैं जिनमें से 80-90 फीसद तक डकारे जा रहे हैं। यही वजह है कि आज सरकार द्वारा इतनी ग्रांट दिए जाने के बावजूद भी हमारे गाँव नरक भोग रहे हैं। और सरकार की सबसे बड़ी गलती यह है कि ग्रामीण भ्रष्टाचार पर आज तक उसकी नजर ही नहीं पड़ी है जिसकी वजह से यह बीमारी पंचायतों में लगातार फल-फूल रही है। अब आप आसानी से समझ गए होंगे कि लोग पंच, सरपंच बनने के लिए लाखों रुपए क्यों खर्च कर देते हैं। यहां आपको यह भी समझना जरुरी है कि कोई भी व्यक्ति या परिवार सिर्फ पहचान के लिए या फिर जन सेवा के लिए अपने घर से पैसे नहीं लगाता है। हम सभी के लिए ऐसा नहीं कह रहे हैं हमने स्वंय ऐसे सरपंच भी देखे हैं जो कुछ ही समय में अपनी ग्राम पंचायत की हर समस्या का समाधान कर देते हैं और हर तरह से विकास करते हैं। समाजसेवा करने वाले सरपंच भी बहुत हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि सरपंच सरकार की और से मिलने वाले पैसे को सही से नहीं लगाते हैं। आप अपने गाँव के पूर्व पंचायतियों की कुंडली खंगालकर खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि वे किस तरह के हैं, समाजसेवी या भ्रष्टाचारी।

पंचायती फंड में गबन से होती है चुनाव प्रचार को खर्चे गए लाखों रुपयों की वसूली 

सरपंच व पंच को दी जाने वाली सेलरी के बारे में तो आपने जान ही लिया है। सरपंच को साल में 36 हजार तो पंच को साल में 12 हजार रुपए सेलरी मिलती है। (How is corruption in the development works of villages) लेकिन जब  चुनाव होता है तो कई गाँवों में देखने में आया है कि सरपंच बनने वाले उम्मीदवार 10 से लेकर 50 लाख रुपए तक चुनाव प्रचार में खर्च कर देते हैं। वोटरों को लुभाने के लिए पैसों से लेकर लुभावनी वस्तुओं व शराब तक का खुला वितरण किया जाता है। अब आप खुद अंदाज लगाएं कि कोई व्यक्ति क्या पांच साल में एक लाख 80 हजार रुपए वेतन पाने के लिए चुनाव में 50 लाख रुपए खर्च करेगा क्या? आपका जवाब होगा नहीं। तो इसका सीधा मतलब हुआ कि वह चुने जाने के बाद जमकर भ्रष्टाचार करेगा और आपके गाँव के विकास कार्यों के लिए आने वाले करोड़ों के फंड को अपने निजी हित में इस्तेमाल करेगा। अब उसने चुनाव से पहले जो लाखों रुपए खर्च किए हैं, उसे पूरा कहाँ से किया जाएगा, आप खुद समझदार हैं। इसलिए ग्रामीण वोटरों का नैतिक दायित्व बनता है कि ऐसे लोगों को बिल्कुल भी वोट न दें जो चुनाव में शराब, लुभावनी वस्तुएं या लाखों रुपए बांटकर वोट मांगे। ऐसे उम्मीदवार 100 फीसद आपके गाँव को लूटने की फिराक में हैं। और आप उनके भ्रष्टाचार को उजागर करने के बाद भी कुछ नहीं कर पाएंगे। क्योंकि जो आदमी चुनाव प्रचार पर लाखों रुपए खर्च कर सकता है। सरपंच चुने जाने के बाद वह किए गए भ्रष्टाचार में से लाखों रुपए अफसरों, नेताओं को हिस्सा देकर खुुद को बचाने का बंदोबस्त भी तो कर सकता है। इसलिए अपने गांवों को लुटने से बचाना है तो ऐसे भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों की पहचान अभी से कर लें जो भविष्य में आपके गाँव के लिए घातक हो सकते हैं। 

नेताओं से भी होता है भ्रष्ट पंच-सरपंचों का गठजोड़, जानिए नेता कैसे करवाते हैं भ्रष्टाचार

इन भ्रष्ट पंच, सरपंचों का गठजोड़ इलाके व प्रदेश के नेताओं से भी होता है। खासकर ये भ्रष्टाचारी सत्ताधारी नेताओं के संपर्क में जरुर रहते हैं ताकि किसी जांच में फंसने पर उन्हें इस्तेमाल किया जा सके। इसके लिए वे नेताओं को गिफ्ट देते हैं या फिर अपने भ्रष्टाचार की कमाई में से कुछ हिस्सा देकर हिस्सेदार बना लिया जाता है। अब जितनी मर्जी शिकायत होती रहे, कुछ नहीं बिगड़ने वाला। क्योंकि संबंधितविधायक, सांसद व नेता जी जो बैठे हैं। यदि किसी भ्रष्ट पंच, सरपंच के खिलाफ शिकायत हो भी जाए तो नेता जी के रहमो-कर्म से जांच के नाम पर खानापूर्ति होती रहती है। मामले को जान-बूझकर लेट किया जाता है। नेता जी के अफसरों को निर्देश रहते हैं कि इस मामले को रफा-दफा करना है, चाहे जैसे भी करो। नेताओं द्वारा शिकायतकर्ता पर समझौते का दबाव बनवाया जाता है, यदि फिर भी वह हार नहीं मानता तो जांच को फर्जी दस्तावेजों, झूठे गवाहों व झूठे शपथपत्रों के माध्यम से प्रभावित कर दिया जाता है। घोटाला करने वालों से शपथ पत्र दिलवा दिया जाता है कि उन्होंने ऐसा कुछ घोटाला नहीं किया और चैप्टर क्लोज। शिकायतकर्ता अब ठगा सा रह जाता है। पंचायती भ्रष्टाचार के लगभग हर मामले में ऐसा ही होता आ रहा है। कार्रवाई सिर्फ उसी एकाध मामले में हो पाती है जिनमेें भ्रष्टाचार के आरोपितों का कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं होता। तो अब आप समझ गए होंगे कि नेता किस तरह से पंचायतों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। 

नई पंचायतों में किसी भी नेता के वर्कर व करीबि को न चुनें पंच-सरपंच वरना पछताओगे...

अब यदि आप चाहते हैं कि भविष्य में आपके गाँव में भ्रष्टाचार पर लगाम लगे तो आप सबसे पहले नेताओं के किसी भी वर्कर, करीबि या फिर उनके परिजन, रिश्तेदार, चेले-चापलूस को अपनी पंचायत में किसी भी पद पर न चुनें। यदि किसी भी नेता का करीबि, परिजन, रिश्तेदार पंचायत में चुना जाता है तो वह चुनाव उपरांत डंके की चोट पर भ्रष्टाचार करेगा। वह यदि आपके गाँव के विकास के लिए आया सौ में सौ फीसद पैसा भी अपने निजी हित में डकार जाएगा तो भी आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे क्योंकि वह किसी नेता का परिजन, करीबि, चेला-चापलूस है। पहली बात तो आपकी शिकायत ही दर्ज नहीं हो पाएगी अगर दो-चार महीने की भागदौड़ के बाद हो भी गई तो साल-दो साल जांच के नाम पर आपको मानसिक तौर पर परेशान किया जाएगा ताकि आप तंग होकर मामले से किनारा कर लें। मान लिया आप जिद्द पर अड़कर भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने में डटे भी रहे तो भी आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे क्योंकि उनके आका नेता जी अपने खासमखास का नुकसान भला कैसे होने दे सकते हैं। भ्रष्टाचारियों पर नेता जी का खुल्लम खुला आशीर्वाद जो है। इसलिए चुनाव के बाद पछताने से अच्छा है, पहले ही ऐसे लोगों की पहचान कर लें तथा अन्य ग्रामीणों को भी ऐसे लोगों के बारे में बताएं। हम दावे से कह रहे हैं कि नेताओं के करीबि जमकर भ्रष्टाचार करेंगे और उनका कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हमारे पास कई गाँवों की पंचायतों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के कई ऐसे मामले हैं जिन्हें नेताओं ने अपने राजनीतिक रसूख की बदौलत रफा-दफा कर लाखों का गबन करने वाले भ्रष्ट पंचायतियों को कानून के शिकंजे से बचाया है। ऐसे नेताओं की मानसिकता पर भी सवाल खड़े होते हैं कि आखिर वे भ्रष्टाचारियों को बचाकर समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं? पंचायती गबन को दबाने वाले ये नेता हरियाणा की उसी सत्ताधारी पार्टियों से ताल्लुक रखते हैं जो प्रदेश में भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा करती हैं। 

परिवारवाद, जातिवाद व जातिगत ठेकेदारों को भी दिखाएं बाहर का रास्ता 

कई गाँवों में पिछले कई सालों से जातिवाद व परिवारवाद वाली परंपरा चली आ रही है जिसकी वजह से गाँवों में सही से विकास नहीं हो पाता। कहीं एक ही परिवार के सरपंच, पंच, बनते आ रहे हैं तो कहीं एक ही जाति विशेष के। मान लिजिए किसी गाँव में एक ही जाति के लोग 80 फीसद रह रहे हैं और दूसरी जातियों के मिलाकर 10-20 फीसद तो ऐसे में क्या होगा। उन 20 फीसद लोगों में से तो कभी कोई पंच-सरपंच चुने जाने की सोच भी नहीं सकता, चुना जाना तो बहुत दूर की बात है। अब ये 80 फीसद वाले लोग उन 20 फीसद का क्या हर्ष करते होंगे, कैसे उनसे भेदभाव होेता होगा, यह किसी को बताने की जरुरत नहीं है। तो इस प्रकार के गाँवों में हमेशा जातिवाद हावी रहता है और ऐसे में समान विकास की कल्पना भला कैसे की जा सकती है। इसलिए इस पंचायत चुनाव में पूर्व के पंचायती जिनके परिवारों में से पहले पंच,सरपंच, ब्लॉक समिति सदस्य या जिला पार्षद रह चुके हैं, ऐसे लोगों को दरकिनार कर नए युवाओं को मौका दें। इसके अलावा अपने आप को जातियों के ठेकेदार कहने वालों से भी दूर रहें क्योंकि वे आपके समाज के वोटों के दम पर हमेशा से अपना उल्लू सीधा करते आए हैं और आगे भी इसी फिराक में हैं। नहीं यकिन तो अपनी-अपनी जाति के ठेकेदारों की सूची बनाएं और फिर देखें कि उनके किन नेताओं से संपर्क हैं और उनसे नजदीकी का फायदा उठाकर उन्होेंने अपने घर-परिवार में क्या निजी लाभ लिए हुए हैं तो आप सब समझ जाएंगे कि क्या ऐसे लोगों का आपकी पंचायत में चुना जाना उचित है। इसलिए इस पंचायत चुनाव में जातिगत ठेकेदारों को अपनी मंशा में तनिक भी कामयाब न होने दें क्योंकि आपके वोटों के दम पर ही ये लोग अब तक अपना उल्लू साधते आए हैं। इस तरह के लोगों को ग्राम पंचायत की बागडोर दिए जाने पर भी आपके गाँव का विकास रुक सकता है। इसके अलावा जो पूर्व पंचायति हैं, जिन्हें पहले से ही भ्रष्टाचार की लत लगी है, ऐसे लोगों व उनके परिजनों, रिश्तेदारों, चेले-चापलूसों को भी अपने गाँव की नई पंचायत में न ही तो चुनें और न ही नई निर्वाचित पंचायत पर ऐसे लोगों की परछाई तक पड़ने दें क्योंकि आप खुद अंदाज लगाएं कि बार-बार वे पंची-सरपंची की तरफ क्यों भाग रहे हैं। क्या अब तक समाजसेवा की कसक पूरी नहीं हो पाई है जिसकी कसर वे पूरा करना चाह रहे हैं। 

इस तरह से लग सकती है पंचायतों के फर्जीवाड़े पर रोक

सरकार को चाहिए कि हर बार पंचायत चुनाव से पहले तथा 5 साल कार्यकाल पूरा होने के उपरांत हर पंच-सरपंच, ब्लॉक समिति सदस्य, जिला पार्षद की संपति की ईमानदारी से जांच करवाए, गाँवों के लिए बनाई गई सरकारी वेबसाईट पर ग्राम पंचायत को दिए जाने वाले फंड व पंचायत द्वारा खर्च किए जाने वाली रकम का पूरा लेखा-जोखा दर्ज किया जाए ताकि कोई भी ग्रामीण इसे आसानी से देख पाए। ग्रामीणों को गाँवों की इन वेबसाईटों बारे ज्यादा से ज्यादा जागरुक करने के लिए पंचायत विभाग द्वारा हर गाँव में शिविर लगाए जाएं ताकि वे अपने गाँव की वेबसाईट चलाने का तरीका जान पाएं और जब चाहें, अपने गाँव से संबंधित हर विकास कार्य तथा हर योजना का पूरा लेखा-जोखा देख सकें कि फलां-फ्लां योजना का लाभ कौन ले रहा है। इस तरह ग्रामीण स्वंय जांच पाएंगे कि क्या वास्तव में सही लाभार्थी योजना का लाभ ले रहा है या पंच, सरपंचों द्वारा 50-50 का सौदा करके गलत लोगों को इसका लाभपात्र बना दिया गया है। क्योंकि ज्यादातर मामलों में होता यही आ रहा है कि पंचायती लोग किसी भी योजना के लिए अपने जान-पहचान के गलत लोगोंं के फार्म भरवा देते हैं और उनसे 50-50 का सौदा पहले ही कर लिया जाता है। क्योंकि अ ब सरकार किसी भी योजना का पैसा लाभार्थी के बैंक खाते में आॅनलाईन भेजती है। तो ये सौदा करने वाले पंचायती फर्जी लोगों के फार्म भरवाकर पहले ही तय कर लेते हैं कि आने वाले पैसे में से 50 फीसद उन्हें दे दें। अब सरकार सोच रही है कि हमने इतने लाभार्थियों को पैसा दिया है तो इसमें भ्रष्टाचार कैसे हो गया। लेकिन भ्रष्टाचार का जो तरीका हमने आपको बताया है, यह लगभग हर गाँव में प्रचलन में  है।  अभी ताजा मामला बरसात से आई बाढ़ का ही ले लिजिए। इसमें भी कई गाँवों में पंचायतियों द्वारा फर्जी आवेदन करवाए जा रहे हैं और उनसे पहले ही कमीशन तय कर लिया गया है। अब आप समझ गए होंगे कि किस तरह से पंचायती गाँवों के असल लाभार्थियों के हक पर डाका मारकर अपने घर,परिवारों, चेले-चापलूसों को फर्जी तरीके से रेवड़ियां बांटते हैं। सरकार को चाहिए कि किसी भी गाँव के विकास के लिए जो पैसा डाला जा रहा है, सांबंधित गाँव की वेबसाईट पर तुरंत प्रभाव से दर्शाया जाए ताकि कोई भी ग्रामीण उसे चेक कर पाए और गड़बड़ी पाए जाने पर उसकी शिकायत कर सके। 

आखिर कब बनेंगी पंचायत निगरानी समितियां, अपना वादा कब पूरा करेंगे सीएम मनोहर लाल 

वर्ष 2016 में पूर्व पंचायत चुनाव के समय मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जिस दिन प्रदेश के सरपंचोें को पद की शपथ दिलाई थी, उस दिन उन्होंने हर गाँव में निगरानी समितियां बनाए जाने का ऐलान किया था।  मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा था कि जल्द ही हरियाणा के हर गाँव में निगरानी समितियों का गठन किया जाएगा लेकिन पंचायतों ने अपना कार्यकाल भी पूरा कर लिया। आज 6 साल बाद भी गाँवों में निगरानी समितियों का गठन नहीं हो पाया है जो पंचायतों के काम-काज पर नजर रख सकें। सरकार को चाहिए कि इस बार नई पंचायत के चुने के साथ ही सबसे पहला काम ही निगरानी समितियों के गठन का होना चाहिए जिनमें गाँव के इमानदार लोगों, अच्छी,नेक सोच रखने वाले ग्रामीणों को शामिल किया जाए ताकि वे पंच,सरपंचों की हर गतिविधि पर नजर रख सकें और पंचायतियों में भी इन निगरानी समितियों का भय बना रहे। इन निगरानी समितियों को पंचायतों से आय-व्यय से संबंधित हर तरह का रिकॉर्ड  देखे जाने के अधिकार हों। 

जागो गाँव जागो ! पंचायतों मेें भ्रष्टाचार रोकने में इस तरह मदद करें ग्रामीण 

ग्रामीणों का सबसे पहला दायित्व बनता है कि वे पंचायत चुनाव के समय उम्मीदवारों द्वारा दिए जा रहे पैसे व शराब आदि के किसी तरह के लालच में न आएं बल्कि ऐसा करने वाले उम्मीदवारों की संबंधित चुनाव अधिकारी, चुनाव आयोग या जिला उपायुक्त को शिकायत करके उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करवाएं। शराब, पैसा बांटने वाले उम्मीदवारों व उनके वर्करों की फोटो, वीडियो बना लेवें तथा तुरंत उन पर कार्रवाई करवाएं। इस प्रकार उनका पर्चा रद्द हो सकता है तथा वे चुनाव से पहले ही बाहर हो सकते हैं। दूसरी सबसे बड़ी बात चुनाव से पहले ऐसे उम्मीदवारों पर नजर रखें जिन्होंने गाँव की पंचायती, सरकारी व शामलाती जमीन तथा जोहड़ों पर अवैध कब्जे किए हुए हैं। ऐसे में नजर रखें कि जो उम्मीदवार नामांकन दाखिल कर रहे हैं, उनमें कोई अवैध कब्जाधारक तो नहीं हैं। यदि ऐसा कोई उम्मीदवार पाया जाता है चाहे वह पंच, सरपंच, ब्लॉक समिति सदस्य, जिला पार्षद सदस्य किसी का भी चुनाव लड़ रहा है, आप उसका भी पर्चा रद्द करवाकर उसे चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर सकते हैं। जिन उम्मीदवारों ने पंचायती, सरकारी जमीनों व जोहड़ों पर अवैध कब्जे किए हुए हैं, उनके द्वारा किए अवैध कब्जों की फोटो, वीडियो बनाएं तथा संबंधित चुनाव अधिकारी, चुनाव आयोग या जिला उपायुक्त को सौंपें। फोटो व वीडियो आप पैन ड्राइव में उपलब्ध करवा सकते हैं तथा फोटो आप प्रिंट करवाकर भी शिकायत के साथ अटैच कर सकते हैं। इस प्रकार आप अवैध कब्जाधारकों को भी चुनाव प्रक्रिया से पहले ही बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। चुनाव के उपरांत आपकी जिम्मेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है। चुनाव उपरांत पंच,सरपंचों की कार्यप्रणाली पर पूरी तरह से नजर रखें। कहीं वह विकास कार्यों में गड़बड़ तो नहीं कर रहे हैं। अपने गाँव की वेबसाईट पर जांचते रहें कि आपके गाँव के विकास के लिए इस साल सरकार द्वारा कितनी ग्रांट दी गई है और किस-किस कार्य के लिए। अब आप यह जांचें कि क्या जिस कार्य के लिए ग्रांट आई है, उसे उसी काम पर लगाया भी जा रहा है या नहीं। कहीं जो काम  होना है, उसे सिर्फ कागजों में ही पूरा करके पूरी की पूरी ग्रांट ही हजम कर ली जाए जैसा कि अब तक होता आ रहा है। क्योंकि अब तक ग्रामीणों के जागरूक न होने की वजह से ही आपके गाँव के हिस्से की करोड़ों की ग्रांट पंच-सरपंच मिलकर डकारते आ रहे हैं। अब मर्जी आपकी है, आप अलर्ट रहते हैं, पंचायत के काम-काज पर नजर रखते हैं तो आप अपने गाँव को लुटने से बचा सकते हैं, वरना वही होना है जो  होता आ रहा है...।      


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